मंगलवार, मार्च 24, 2009

thought

तीन साल बाद आज मैं अपने ब्लोग पर आई हूं.यस,हीन्दी लिपिके साथ.मैं जानती हूं कि यहाँ मुझे कोई बन्धन नहीं.कोई मेरी लिखावट्को काटेगा नहीं.
मैं वरुन गान्धीकी हिम्मत के लिये उसे बधाई देती हूँ.अपने आपको किसी धर्मका बतानेमें कोई गुनाह नहीं.अगर राज ठाकरे अपनेको मराठा कह सकते हैं और उनके भाषणको भडकाउ नहीं माना जाता तो राहुलकी बात भी सही मानी जानी चाहिये.
राज उत्तर प्रदेश्वासियों को महाराष्ट्रसे बाहर निकलनेको कह्ते हैं,क्यों?अगर महाराष्ट्रमें मराठियोंका हित देखा जाता है तो हिन्दुस्तान्में हिन्दुओंका हित देखा  जायेगा.